काठमांडू जल उठा: नेपाल में Gen Z की क्रांति या तख्तापलट? पूरी कहानी यहां पढ़ें!

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नेपाल में क्या हो रहा है?
मंगलवार (9 सितंबर) को काठमांडू की सड़कों पर जैसे बम फट पड़ा। आक्रोशित Gen Z युवाओं ने संसद भवन से लेकर नेताओं के घरों तक को आग के हवाले कर दिया। सोशल मीडिया बैन, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवारवाद के खिलाफ गुस्से में उतरे युवाओं ने ऐसा बवाल मचाया कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल को सेना की सुरक्षा में किसी गुप्त स्थान पर ले जाया गया।


🔥 कौन हैं ये प्रदर्शनकारी? और इतने गुस्से में क्यों हैं?

कुछ महीनों पहले फेसबुक पर ‘Next Generation Nepal’ जैसे पेजों ने नेपाल की राजनीति और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की। इन पेजों पर पोस्ट करने वालों के नाम नहीं पता चले, लेकिन साफ था कि यह आवाज़ 1996 से 2012 के बीच पैदा हुई ‘Gen Z’ की थी।

इन युवाओं का गुस्सा उन नेताओं के खिलाफ था, जो 2008 से नेपाल की राजनीति पर कब्जा जमाए हुए हैं। सोशल मीडिया पर ‘नेपो बेबीज़’ और ‘नेपो किड्स’ जैसे ट्रेंड्स से नेताओं के बच्चों की ऐशो-आराम की ज़िंदगी पर तंज कसे गए।

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🚫 सोशल मीडिया बैन बना आग की चिंगारी

सरकार ने हाल ही में फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, X और यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया, क्योंकि ये तय समय तक रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाए थे।

Gen Z के लिए ये सोशल मीडिया बैन किसी हथकड़ी जैसा था—वही तो उनका आवाज़ उठाने का प्लेटफॉर्म था। और बस, इसी ने चिंगारी को शोला बना दिया।

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सोमवार को हजारों युवा सड़कों पर उतर आए और पुलिस की गोलीबारी में 19 प्रदर्शनकारी मारे गए। इसके बाद जैसे सब कुछ हाथ से निकल गया।

सोमवार शाम को सरकार ने सोशल मीडिया बैन हटाया, लेकिन तब तक आग भड़क चुकी थी। प्रदर्शनकारी अब भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और बेरोज़गारी जैसे बड़े मुद्दों को लेकर आंदोलनरत हैं।


🏛️ किन-किन नेताओं के घरों पर हुआ हमला?

मंगलवार को संसद के पास रैली की योजना थी, लेकिन सोमवार की गोलीबारी के बाद प्रदर्शनकारी उग्र हो गए। हथियारों से लैस कुछ प्रदर्शनकारियों ने पांच पूर्व प्रधानमंत्रियों—ओली, प्रचंड, माधव नेपाल, झाला नाथ खनाल और शेर बहादुर देउबा—के घरों पर हमला किया।

  • राजलक्ष्मी चित्रकार, पूर्व PM खनाल की पत्नी, आग में झुलस कर चल बसीं।
  • शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री अर्जु देउबा, पर हमला हुआ। देउबा को गंभीर चोटें आईं।
  • वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल और सांसद एकनाथ ढकाल को निर्वस्त्र कर सड़कों पर घुमाया गया।
  • प्रचंड का चितवन स्थित घर और अर्जु देउबा का धनगढ़ी वाला घर पूरी तरह जल गया।
  • ललितपुर के नक्खु जेल को जलाकर RSP प्रमुख रवि लामिछाने को रिहा कर दिया गया।

🤯 अब नेपाल की सत्ता किसके हाथ में है?

फिलहाल नेपाल में कोई स्पष्ट नेतृत्व नहीं है। संसद भंग करने की मांगें उठ रही हैं और एक गहरा संवैधानिक संकट सामने आ गया है।

सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने शांति की अपील की है और काठमांडू के मेयर बालेन शाह सहित नेताओं से राष्ट्रीय सुलह की बात कही है।

हालांकि, सेना के सीधे सत्ता संभालने की संभावना कम है, लेकिन जब तक सरकार बहाल नहीं होती, तब तक सेना ही स्थिति संभालेगी।


🧨 क्या सेना सत्ता में आएगी?

सेना ने मंगलवार शाम से पूरे देश में सुरक्षा की कमान संभाल ली है और जनता से सहयोग मांगा है। हालांकि उन्होंने राजनीतिक हस्तक्षेप से दूरी बनाए रखी है, लेकिन फिलहाल वही शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं।


🗣️ विपक्ष और अन्य नेता क्या कह रहे हैं?

लगभग हर वरिष्ठ नेता इस विद्रोह का शिकार हुए हैं।

  • मेयर बालेन शाह (पूर्व रैपर) और
  • RSP नेता रवि लामिछाने (पूर्व टीवी एंकर) — दोनों ने प्रदर्शनकारियों का खुला समर्थन किया है।
  • राजशाही समर्थक RPP संसद से सामूहिक इस्तीफे पर विचार कर रही है।

👑 क्या पूर्व राजा वापसी की तैयारी में हैं?

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना जताई और घायलों के जल्दी ठीक होने की कामना की है।

उन्होंने सभी पक्षों से मिल-बैठकर समाधान निकालने की अपील की है—संकेत साफ है कि वे संकट के समय कोई भूमिका निभाने को तैयार हैं, जैसे पहले उनके पास संवैधानिक भूमिका होती थी।


🇮🇳 भारत क्या सोच रहा है?

नेपाल में हो रही इस उथल-पुथल को लेकर भारत में भी चिंता गहराई है।

भारत को नेपाल की कुछ राजनीतिक ताकतों के करीबी होने के कारण यह स्थिति संभालने में दिक्कत हो रही है।

मंगलवार देर शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक की अध्यक्षता की और कहा:

“नेपाल में हिंसा दिल दहलाने वाली है। नेपाल की स्थिरता, शांति और समृद्धि हमारे लिए बेहद जरूरी है।”


📌 Bottom Line

9 सितंबर को जो कुछ नेपाल में हुआ, वो इतिहास में दर्ज हो चुका है। एक पूरी पीढ़ी ने देश की राजनीति को सीधी चुनौती दे दी है। अब सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक जनआंदोलन था या एक नया युग शुरू हो रहा है?

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